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'केशवदास' कहते है कि जहाँ ऐसा वर्णन किया जाय कि जो न तो कभी पहले हुआ हो, या वर्तमान हो रहा हो और न भविष्य में होने ही वाला हो, उसे अद्भुतोपमा कहते है।

उदाहरण

सवैया

पीतमको अपमान न मानिन ज्ञान सयाननि रीझिरिझावै।
बंकबिलोकनि बोल अमोलनि तौ बोलि केशव मोद बढ़ावै॥
हावहू भाव विभाव के भाव प्रभाव के भाबनि चित्त चुरावे।
ऐसे विलास जो होयँ सरोज मे तौ उपमा मुख तेरे कि पावै॥१२॥

'केशवदास' कहते है कि जो मान करके अपमान न करे और सयानता के साथ गान करके स्वंय भी प्रसन्न हो और उसे भी प्रसन्न करे। तिरछी चितवन तथा मीठे वचनो से उसके मन के प्रसन्नता को बढ़ावे। हाव, भाव, विभाव तथा प्रेम के प्रभाव से उसका मन चुरावे। जब इतने गुण कमल में हो, तब कहीं वह तेरे मुख को समता पा सके।

५---विक्रियोपमा

दोहा

क्योंहू क्योंहू वर्णिये, कौनहु एक उपाइ।
विक्रय उपमा होत तहँ, बरणत केशवराइ॥१३॥

'केशवराय' कहते है कि जहाँ उपमेय के एक होने पर उपमान को, कभी एक प्रकार और कभी दूसरी प्रकार वर्णन किया जाय, वहाँ विक्रियोपमा होती है।

उदाहरण

कवित्त

'केशवदास' कुन्दन के कोशते प्रकाश मान,
चिंतामणि ओपनि सों ओपिकै उतारी सी।