उदाहरण
कवित्त
दुरि है क्यों भूषन बसन दुति यौवन की,
देह ही की जोति होति द्यौस ऐसी राति है।
नाह की सुबास लागै ह्वै है कैसी 'केशव',
सुभाव ही की बास भौरभीर फोरखाति है।
देखि तेरी मूरति की, सूरति बिसूरति हौ,
लालन को दृग देखिबे का ललचाति है।
चलिहै क्यों चन्द्रमुखी, कुचनि के भार भये,
कुचन के भार ते लचकि लङ्कजाति है॥१०॥
तेरे यौवन की द्युति भूषण और वस्त्रो से कैसे छिपेगी, जब तेरी देह की ज्योति से ही रात दिन के समान हो जाती है। 'केशवदास' (सखी की और से) कहते है कि पति की सुगन्ध लगने से क्या दशा होगी, जब तेरी स्वाभाविक सुगन्ध को भौंरो की भीड़ खाये डालती है (अर्थात् इतनी सुगन्ध है कि भौंरो के झुण्ड के झुण्ड मडराया करते हैं) इसीलिए मैं तो तेरी सूरत को देख-देख कर ऐसे सोचा करती हूँ और तू श्री कृष्ण के मुख को देखने को ललचाती है। हे चन्द्रमुखी! कुचो का भार होने पर तू कैसे चलेगी, जब बालो के भार ही से तेरी कमर लचकी सी जाती है।
४---अद्भुतोपमा
दोहा
जैसी भई न होति अब, आगे कहै न कोय।
केशव ऐसी बरणिये, अद्भुत उपमा होय॥११॥