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१-संशयोपमा

दोहा

जहाँ नही निरधार कछु, सब सन्देह सुरूप।
सो संशय उपमा सदा, बरणत है कविभूप॥५॥

जहाँ कुछ निश्चित न होकर, सभी सन्देह स्वरूप हो, उसे संशयोपमा कहते हैं।

उदाहरण

सवैया

खंजन है मनरंजन केशव, रंजननैन किधौ, मतिजीकी।
मीठी सुधाकि सुधाधर की द्युति, दंतनकी किधौ, दाड़िम हीकी॥
चन्द भलो, मुखचन्दीकधौ, सखि सूरति कामकी कान्हकी नीकी।
कोमलपंकज कै, पदपंकज, प्राणपियारे कि मूरति पीकी॥६॥

'केशवदास' (सखी की ओर से) पूछते है कि खंजन अच्छे हैं या श्रीकृष्ण के नेत्र? तू ही अपनी बुद्धि से निश्चय कर के बता। अमृत मोठा है या उन के अमृत जैसे ओठ? उनके दाँतो की चमक अच्छी है या अनार के दानो की? हे सखी! चन्द्रमा अच्छा है या उनका मुख चन्द्र? कामदेव की सूरत अच्छी है या श्रीकृष्ण की मूर्ति? कमल कोमल है या उनके चरण-कमल? प्राण अधिक प्यारे है या श्रीकृष्ण की मूर्ति।

२--हेतूपमा

दोहा

होत कौनहू हेतूते, अति उत्तम सों हीन।
ताही सों हेतूपमा, केशव कहत प्रवीन॥७॥

'केशव दास' कहते हैं कि जहाँ उपमान उपमेय से हीन होता है, उसी को प्रवीण लोग 'हेतूपमा' कहते है।