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जब ब्रजनाथ (श्रीकृष्ण) ने तेरा हाथ प्रेम से पकड़ा, तब तो मानो उनका धैर्य छूट गया। तूने पान तो मुख मे खाये है, परन्तु उनका रंग नेत्रो पर चढ़ा है। न हो, तो दर्पण देख ले कि मै ठीक ही कह रही हूँ हे सुखदायनी सजनी (सखी) तूने आलिङ्गन देकर मोहन (श्रीकृष्ण) का मन मोह लिया और गोपाल लाल ने तेरे गालो पर नख-क्षत दिया है, उससे तेरी बड़ी शोभा हो गई है।

उदाहरण (३)

सवैया

जीव दियो जिन जन्म दियो, जगी जाही की जोति बड़ी जग जानै।
ताही सो वैर मनो वच काय करै कृत केशव को उरआनै।
मूषक तौ ऋषि सिंह करयो फिरि ताही कों मूरुख रोष बितानै।
ऐसो कछू यह कालहै जाको भलो करिए सु बुरो करि मानै॥४२॥

'केशवदास' कहते हैं कि जिस (भगवान्) ने यह जीव और जन्म दिया और जिसकी बड़ी भारी ज्योति को सारा संसार जानता है, उसी से तू मन, वचन और कर्म से वैर करता है तथा उसके किये हुए उपकारो को नहीं मानता। ऋषि ने तो चूहे को सिंह बनाया पर उस मूर्ख ने उन्हीं के सामने क्रोध प्रकट किया। यह समय ही कुछ ऐसा है कि जिसका भला करो वही बुरा करके मानता है।