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जहाँ पर देश और काल के अनुसार बुद्धिमत्तापूर्वक अनेक बातो का वर्णन एक मे मिलाकर वर्णन किया जाय, उसे माला दीपक कहते है। उसके बहुत से भेद है।

उदाहरण

सवैया

दीपक देहदशा सों मिलै, सुदशा मिलि तेजहि ज्योति जगावै।
जागिकै ज्योति सबै समुझै, तमशोधि सु तौ शुभता दरशावै॥
सो शुभता रचै रूपको रूपक, रूप सु कामकला उपजावै।
काम सु केशव प्रेम बढ़ावन, प्रेमलै प्राणप्रियाहि मिलावै॥२८॥

देह एक दीपक है। वह दशा (युवावस्था और बत्ती) से मिलता है। दशा तेज और ज्योति (प्रकाश तथा ज्ञान) को जगाती है। ज्योति (प्रकाश और ज्ञान) जगने पर सब बाते समझ में आती है और दिखलाई पड़ने लगती है और वह तम (अंधकार तथा अज्ञान) को दूर करके शुभता (सोदर्य तथा प्रकाश) प्रदर्शित करती है वह शुभता (सौंदर्य और प्रकाश) रूप का रूपक रचती है अर्थात् सौंदर्य की ओर अधिक रुचि उत्पन्न करती है और वह रूप काम कला को उत्पन्न करता है (अथवा काम से प्रेम कराता है)। 'केशवदास' कहते है कि वह काम प्रेम को बढ़ाता है और प्रेम प्राणप्रिया से मिला देता है।

उदाहरण (२)

(कवित्त)

घननि की घोर सुनि, मोरन के सोर सुनि,
सुनि सुनि केशव अलाप आली गन को।
दामिनि दमक देखि, दीप की दिपिति देखि,
देखि शुभ सेज, देखि सदन सुमन को।