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सुनार तो गहने बना बनाकर मरता है और स्त्रियाँ उनसे अपना शरीर सजाती है। 'केशवदास' कहते है कि लेखक तो पुराणो को लिख लिखकर मरता है और पंडित उसे पढ़ते है।

२१-प्रप्तिद्धालङ्कार

दोहा

साधन साधै एक भुव, भुगवै सिद्धि अनेक।
तासों कहत प्रसिद्ध सब, केशव सहित विवेक॥७॥

'केशवदास' कहते है कि जहाँ कार्य को साधने वाला तो एक हो और उसकी सिद्धि को भोगने वाले अनेक हो, वहाँ विवेकी लोग, उसे प्रसिद्ध अलंकार कहते है।

उदाहरण

सवैया

माता के मोह पिता परितोपन, केवल राम भरे रिसभारे।
औगुण एकहि अर्जुन को, क्षिति मंडल के सब क्षत्रिय मारे।
देवपुरी कहँ औधपुरी जन, केशवदास बड़े अरु बारे।
शूकर श्वान समेत सबै हरिचन्द के सत्य सदेह सिधारे॥८॥

(इसका अर्थ प्रभाव के स० मे लिखा जा चुका है)

३०–विपरीतालंकार

दोहा

कारज साधक को जहाँ, साधन बाधक होय।
तासों सब विपरीत यों कहत सयाने लोय॥९॥

जहाँ साधक का बाधक साधन हो जाता है, वहाँ सभी चतुर लोग उसे विपरीवालंकार कहते है।