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देखकर, उसे मनाने आये। हँस हँसकर, शपथ खा-खाकर और पैरो पड़ पड़कर, ईश्वर की सौगन्ध, जब वह थक गये, तब उसी समय घनघोर बादल उठे और वह बिजली की भॉति लपक घनश्याम से लपट गई।

[इसमे दैव योग से अचानक कार्य हो गया, अत: समाहित अलंकार है]

उदाहरण (२)

सवैया

सातहु दीपनि के अवनीपति हारि रहे जियमें जब जाने।
बीस बिसे व्रत भग भयो, सु कह्मो अब केशव को धनु ताने।
शोक कि आगि लगी परिपूरण, आइगये घनश्याम बिहाने।
जानकी के जनकादिक केशव फूलि उठे तरु पुण्य पुराने॥३॥

'केशवदास' कहते है कि जब सातो द्वीपो के राजा लोग हार गये, तब उन्होने (राजा जनक ने) अधने मनसे कहा कि 'अब मेरी प्रतिज्ञा पूरी तरह से भंग होना चाहती है क्योकि अब धनुष को कोन खींचेगा।' उनके मनमे शोकाग्नि पूरी तरह से लगी हुई थी कि उसी समय घनश्याम (यहाँ श्रीराम) आ पहुँचे और उनके आते ही जानकी जी तथा जनकादि के पुराने पुण्य-तरु फूल उठे अर्थात् उनकी इच्छा पूरी हुई।

२६-सुसिद्धालङ्कार

दोहा

साधि-साधि औरै मरै, औरै भोगै सिद्धि।
तासों कहत सुसिद्धि सब, जे है बुद्धि समृद्धि॥४॥

जहाँ कार्य कर करके तो कोई और मरे और उसकी सफलता कोई दूसरा भोगे उसे समृद्धि-बुद्धि (बुद्धिमान्) सुसिद्धालङ्कार कहते है।