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अचेत पड़े है इसीलिये आई हैं, नहीं तो क्या तेरी जैसी गोबर बीनने वाली ग्वालिने गोकुल गाँव मे कम है?

उदाहरण

कवित्त

जानिये न जाकी माया मोहित गिलेहि माझ,
ए हाथ पुन्य, एक पाप को विचारिये।
परदार प्रिय मत्त मातग सुताभिगामी,
निशिचर को सो मुख देखो देह कारिये।
आज लौ अजादि राखे बरद विनोद भावै,
एते पै अनाथ अति केशव निहारिये।
राजन के राजा छांड़ि की जतु तिलक ताहि,
भीषम सों कहा कहौ पुरुष न नारिये॥२५॥

(जब भीष्म के कहने से श्रीकृष्ण को तिलक करने का विचार पक्का कर लिया गया तब शिशुपाल कहता है कि) जिसकी माया कुछ समझ मे नहीं आती और जिनकी माया बीच ही मे लोगो को मोह लेती है तथा जिसके हाथ मे पुण्य और एक मे पाप रहता है। जो परदार प्रिय है। (पराई स्त्रियो) का प्रेमी है, मतवाले मातग नामक चांडाल के पुत्र के पास जाता आता रहता है। जिसका निश्चर जैसा काला मुख है और देखो, निश्चर ही जेसा काल शरीर है। जो आज तक बकरियो को रखाता रहा और जिसे बैलो के साथ खेलना ही अच्छा लगता रहा। केशवदास (शिशुपाल की ओर से) कहते हैं कि इतने पर भी अति अनाथ ही दिखलाई पड़ा, क्योकि यह तनिक भी भूमि का नाथ नही रहा। इतने पर राजाओ के राजा को छोड़कर इसका तिलक कराते हैं। मै उन भीष्म से भला क्या कहूँ जो पुरुष है न स्त्री है।