पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२२२)

उदाहरण-२

कवित्त

 सटकारे केश, लोनी कछु होनी बैस,
सोने ते सलोनी दुति देखियत तन की।
आछे आछे लोचन, चितौनी औ चलनि आछी,
सुख मुख कविता विमा है मति मन की।
'केशौदास' केहूँ भाग पाइये जो बाग गहि,
सांसनि उसासै साध पूजै रति रन की।
बटी काहू गोप की विलोकी प्यारे नन्द लाल?
नाही लोल लोचनी! बड़या बड़े पन की॥८३॥

उसके काले सटकारे (लम्बे) केश। बाल अथवा गर्दन पर के बाल) हैं, वह लोनी (सुन्दर) है, और होनहार वयस की है अर्थात् युवती होने वाली है। उसके शरीर की चमक सोने जैसी दिखलाई पड़ती है। उसके अच्छी अच्छी ऑखें है, चितवन और चाल भी अच्छी है। सुख मुख सुन्दर मुख वाली अथवा (मुख से सुख देने वाली) है। उसकी कविता (काव्य अथवा लगाम चबाने की ध्वनि) बद्धि और मन को हर लेती है। केशवदास श्रीकृष्ण की ओर से कहते हैं कि) यदि किसी तरह भाग्य वश उसे बाग मे पकड़ पाऊँ (अथवा किसी प्रकार भागकर लगाम पकड़ पाऊँ) तो एक सास मे मेरे रति-रण (रति रूपी रण अथवा रण के प्रति प्रेम) की साध (इच्छा) पूरी हो जाय। श्रीकृष्ण की इन बातो को सुनकर श्री राधिका जी ने पूछा कि 'हे प्यारे नन्द लाल! क्या आपने किसी गोप की बेटी को देखा है, जिसका वर्णन कर रहे हो? उन्होने उत्तर दिया-'नहीं! चंचल नेत्र वाली! मै तो किसी बहुमूल्य घोड़ी का वर्णन कर रहा हूँ।'