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उदाहरण

कवित्त

गरुवो गुरू को दोष, दूषित कलङ्क करि,
भूषित निशचरीन अंकन भरत है।
चंडकर मण्डल ते लै लै वहु चड़कर,
'केशौदास' प्रतिभास मास निसरत है।
विषधर बन्धु है अनाथिनि को प्रति बन्धु,
विष को विशेष बन्धु हिये हहरत है।
कमल नयन की सौ, कमल नयन मेरे,
चन्द्रमुखी! चन्द्रमा ते न्याय ही जरत है॥

(कोई विरहिणी अपनी सखी से कहती है कि) चन्द्रमुखी! मै कमल-नयन (श्री कृष्ण) की शपथ खाकर कहती हूँ कि मेरे कमल जैसे नेत्र चन्द्रमा को देखकर ठीक ही जलते है, (क्योकि चन्द्रमा और कमल का वैर स्वाभाविक ही है) दूसरे यह चन्द्रमा के गुरु के प्रति भारी अपराध का अपराधी है कलंक से दूषित है। निशाचरियो को अंक भरता है (क्योकि राक्षसनियाँ रात मे ही विचरती और सुख पाती है) सूर्य मण्डल से बहुत सी किरणो को चुरा चुरा प्रतिमास निकला करता है। इसके विषधर (श्री शंकर जी) बन्धु है। विरहिणियो शत्रु है और उस विष का तो विशेष भाई (सहोदर) ही है, जिससे सबके हृदय हिल जाते है।

[इसमे चन्द्रमा का वर्णन पहले यह कह कर किया गया कि 'मेरे नेत्र चन्द्रमा को देखकर जलते है फिर इसी कथन को उसके रूप, शील, गुण तथा युक्ति बल से प्रमाणित किया गया है अत युक्ति अर्थान्तर न्यास है]