तिनके पुत्र प्रसिद्ध जग, कीन्हे हरि हरिनाथ।
तामरपति तजि और सो, भूलि न ओड्यो हाथ॥१२॥
पुत्र भये हरिनाथ के, कृष्णदत शुभ वेष।
सभा शाह सग्राम की जीती गढ़ी अशेष॥१३॥
तिनको वृत्ति पुराण की, दीन्ही राजा रुद्र।
तिनके काशीनाथ सुत, सो भे बुद्धिसमुद्र॥१४॥
जिनको मधुकरशाह नृप, बहुत कियो सनमान।
तिनके सुत बलभद्र बुध, प्रकटे बुद्धिनिधान॥१५॥
बालहि ते मधुशाह नृप तिनसों सुन्यो पुरान।
तिनके सोदर द्वै भये, केशवदास कल्यान॥१६॥
भाषा बोलि न जानहीं, जिनके कुल के दास।
भाषा कवि भो मंदमति, तेहि कुल केशवदास॥१७॥
इन्द्रजीत तासों कह्यो, मांगन मध्य प्रयाग।
मांग्यो सब दिन एक रस, कीजै कृपा सभाग॥१८॥
योहीं कह्यो जु बीर बर, मांगु जु मन मे होय।
मांग्यो तव दरबार में, मोहिं न रोकै कोय॥१९॥
गुरु कार मान्यो इन्द्रजित, तनमन कृपा विचारि।
ग्राम दये इकबीस तब, ताके पायँ पखारि॥२०॥
इन्द्रजीत के हेतु पुनि, राजा राम सुजान।
मान्यो मन्त्री मित्र कै, केशवदास प्रमान॥२१॥
ब्रह्माजी के चित्त से सनकादि प्रकट हुए और उनके चित्त से सनाढ्य ब्राह्मणो की उत्पत्ति हुई। ( अर्थात् ब्रह्माजी के मानसिक पुत्र सनकादि थे और सनकादि के मानसिक पुत्र सनाय ब्राह्मण हुए। भृगुनन्द परशुराम ने उन्हे उत्तम ब्राह्मण समझ कर पैर पखारे और ७२ गाँव दिये। जग-पावन वैकुंठपति श्री रामचन्द जी ने मथुरा मण्डल में उन्हे ७०० गॉव प्रदान किये। फिर सोमवश के यदुकुल-श्रेष्ठ तथा त्रिभुवन पालक श्रीकृष्ण महाराज ने भी कलियुग मे उन्हे वही ( मथुरा