ब्रह्मादिक के विनय ते, प्रकट भये सनकादि।
उपजे तिनके चित्त ते, सब सनाढ्य की आदि॥१॥
परशुराम भृगुनद तब, तिनके पाँय पखारि।
दिये बहत्तरि ग्राम सब, उत्तम विप्र विचारि॥२॥
जगपावन बैकुँठपति, रामचन्द्र यह नाम।
मथुरा-मडल मे दिये, तिन्हैं सात सै ग्राम॥३॥
सोमवंश यदुकुल कलश, त्रिभुवनपाल नरेश।
फेरि दिये कालकाल पुर, तेई तिनहि सुदेश॥४॥
कुंभवार उद्देश कुल, प्रकटे तिन के बस।
तिन के देवानन्द सुत, उपजे कुल अवतस॥५॥
तिनके सुत जगदेव जग, थापे पृथ्वीराज।
तिनके दिनकर सुकुल सुत, प्रगटे पंडितराज॥६॥
दिल्लीपति अल्लावदी, कीन्ही कृपा अपार।
तीरथ गया समेत जिन, अकर कियो कै बार॥७॥
गया गदाधर सुत भये, तिनके आनंदकन्द।
जयानन्द तिनके भये, विद्यायुत जगबन्द॥८॥
भये त्रिविक्रम मिश्र तव, तिनके पण्डितराय।
गोपाचल गढ़ दुर्गपति, तिनके पूजे पायँ॥९॥
भावशर्म तिनके भये, तिनके बुद्धि अपार।
भये शिरोमणि मिश्र तव, षटदरशन अवतार॥१०॥
मानसिह सों रोप करि, जिन जीती दिशि चारि।
ग्राम बीस तिनको दये, राना पायँ पखारि॥११॥
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