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उदाहरण-६

सवैया

सखि सोहत गोपसभा महि गोविन्द बैठे हुते द्युतिको धरिकै।
जनु केशव पूरणचन्द्र लसै चित चारु चकोरनिको हरिके॥
तिनको उलटोकरि आनि दियो केहु नीर नयो भरिकै।
कहि काहेते नेकु, निहार मनोहर फेरि दियो कविता करिकै॥४६॥

( केशवदास किसी सखी की ओर से कहते हैं कि है सखी! श्रीकृष्ण गोपी की मंडली मे, शोभा धारण किए हुए बैठे थे। वह ऐसे ज्ञात हो रहे थे मानो चकोरो का मन हरण करता हुआ पूर्ण चन्द्रमा सुशोभित हो रहा हो। इसी बीच मे, किसी ने उसको कमल के पुष्प में पानी भरकर उलटा करके, दे दिया। श्रीकृष्ण ने उसकी ओर तनिक देखा और उस कमल को काली जैसा करके (खिले हुए फूल को, बन्द करके) लौटा दिया। बता, क्यो?

[कमल पुष्प लाने वाले का तात्पर्य यह था कि वियोगिनी अपना कमल-मुख लटकाये हुए, आपके विरह मे रो रही है। श्रीकृष्ण ने, कमल को कली बनाकर यह संकेत किया। कि जब कमल सकुचित हो जाते है, तब रात मे मिलूँगा।]

१४-लेशालंकार

दोहा

चतुराई के लेसते, चतुर न समझैं लेस।
बर्णत कवि कोविद सबै, ताको केशव लेस॥४७॥

केशवदास कहते है जहाँ ऐसी गूढ चतुराई की जाय कि उसे चतुर लोग भी लेशमात्र न समझ पावें, वहाँ, उसे कवि लोग तथा विद्वान सभी 'लेश' अलंकार कहा करते है।