अप्रवीणो की तो बात ही क्या कहूँ उसके विरोधियो की वीणाओं तक को मन मे दुःख होता है ( कि हम इसके हाथ से न बजाई गई )। यह रायप्रवीण है या लक्ष्मी है, क्योंकि जिस प्रकार लक्ष्मी, रत्नाकर ( समुद्र ) से लालित हैं उसी प्रकार यह भी रत्नाकर ( रत्नो के समूह ) से लालित रहती है। जिस प्रकार लक्ष्मी परमानन्द ( भगवान् विष्णु ) मे लीन रहती है उसी प्रकार यह भी अत्यन्त आनन्द मे लीन रहती है। जिस प्रकार लक्ष्मी के हाथो मे निर्मल कमल रहता है उसी प्रकार यह भी हाथों में कमल नामक ककण पहने रहती है। यह प्रवीण राय है या शारदा है? क्योंकि, जिस प्रकार शारदा का शरीर स्वच्छ कान्ति से युक्त है उसी प्रकार इसका शरीर भी श्रृंगार से सुशोभित है। जैसे शारदा वीणा और पुस्तक धारण करती है, वैसे यह भी वीणा और पुस्तक लिये रहती है। जिस प्रकार शारदा राज हस के पुत्र अर्थात् राजहंस के साथ रहती हैं, उसी प्रकार यह भी हस-सुत अर्थात् सूर्य वंशी-राजा के साथ रहा करती है। यह राय प्रवीण है या पार्वती, क्योंकि जिस प्रकार शिव की अर्धाङ्गिनी होने के कारण पार्वती वृषवाहिना ( बैल पर सवार ) हैं उसी प्रकार यह भी वृष वाहिनी ( धर्म पर सवार ) है। जिस प्रकार उनके अंग मे वासुकि ( नाग ) पड़ा रहता है उसी प्रकार इसके अंग मे भी वासुकि ( सुगन्धित पुष्पहार ) रहता है। वह जैसे शिव के संग रहती है, वैसे यह भी शिव ( सुशोभितरूप के साथ रहती है। वैसे तो सभी वेश्याएँ नाचती, गाती, पढती और वीणा बजाती है परन्तु उनमे काव्य रचना अकेली रायप्रवीण करती है। श्री सूर्य देव ने उसे कविता करने की प्रकाशमयी प्रतिभा दी है। उसी की शिक्षा के लिए केशवदास ने यह 'कविप्रिया' बनाई है।