पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२०९

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जो सङ्गीत प्रिय हैं तथा बुद्धिमान कहे जाते है जो सुन्दर शक्ति [बर्छि] के धारणकर्ता है अर्थात् भाला चलाने मे निपुण है। जो युद्ध-प्रिया है। जिनके यश का वर्णन बहुत से लोग करते है और केशवदास भी करते है। जो ब्राह्मणो के चरणो को स्वच्छ भूषण मानते है अर्थात् उनके भक्त हैं। जो लक्ष्मीवान और परदार (शत्रु की भूमि) को प्यार करने वाले अथवा लेने की इच्छा रखने वाले हैं। ऐसे गुणो से युक्त राणा अमरसिंह को समझना चाहिए।

श्लेष अलङ्कार के भेद

दोहा

तिनमें एक अभिन्न पद, और भिन्नपद जानि।
श्लेष सुबुद्धि दुरेष के, केशवदास बखानि॥३४॥

'केशवदास' कहते है कि हे सुबुद्धि पाठक! श्लेष अलकार दो तरह के होते है। उनमे से एक 'अभिन्नपद' कहलाता है और दूसरा 'भिन्नपद' कहलाता है।

उदाहरण

अभिन्नपद

कवित्त

सोहति सुकेशी मंजुघोषा रति उर बसी,
राजाराम मोहिबो को सूरति सोहाई है।
कलरव कलित सुरभि राग रंग युत,
बदन कमल षटपद छवि छाई है।
भृकुटी कुटिल घनु, लोचन कटाक्ष शर,
भेदियत तन मन अति सुखदाई है।
प्रमुदित पयोधर दामिनी सी नाथ साथ,
काम की सी सेना काम सेना बनि आई है॥३५॥