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तीन अर्थ का श्लेष

कवित्त

परम विरोधी अविरोधी ह्वै रहत सब,
दानिन के दानि, कवि केशव प्रमान है।
अधिक अनन्त आप, सोहत अनन्त संग,
अशरण शरण, निरक्षक निधान है।
हुतभुक, हित मति, श्रीपति बसत हिय,
गावत है गंगाजल, जग को निदान है।
'केशौराय' की सौ कहै 'केशौदास' देखि देखि,
रुद्र की समुद्र की अमरसिंह रान है॥३१॥

पहला अर्थ

श्रीरुद्र पक्ष मे

जिनके यहाँ परम विरोधी (सिंह, बैल, साँप मोर, चूहा-सॉप और अग्नि-जल) जीव और पदार्थ अविरोधी होकर (परस्पर प्रेम पूर्वक) रहते है। जो दानियो को दान देने वाले हैं अर्थात् देवताओ को भी वरदान देते है और जो केशव ( श्रीनारायण ) के सच्चे कवि है अर्थात् उनका गुणगान करते है। जो स्वंय अनन्त से अधिक ( बड़े ) है, परन्तु अनन्त ( शेष नाग ) के साथ रहते है। जो शरण हीनो की शरण है तथा अरक्षित जीवो के लिए ( सुख के ) निधान है। अग्नि के हित पर जिनकी बुद्धि रहती है अर्थात् जिन्हे यज्ञादि अच्छे लगते हैं और जिनके हृदय मे श्रीपति श्रीविष्णु ) रहते है जिन्हे गंगाजल अच्छा लगता है तथा जो संसार के जीवो की शरण है। ईश्वर की शपथ, केशवदास देख देखकर कहते है कि यह रुद्र है, समुद्र है या अमर सिंह राना है।