ससुर, अन्नदाता और भयत्राता) पिता और पच (दूध, दही, घी, मधु और मिश्री) अमृत---ये पाच को सख्या के सूचक है।
छ सूचक
दोहा
कुलिश कोन षट, तर्क षट् , दरशन, रस, ऋतु अंग।
चक्रवर्ति शिवपुत्रमुख, सुनि षट्राग प्रसग॥१५॥
षट्माता षट्वदनकी, षट्गुण बरणहु मित्त।
आततायि नर षट गनहु, षटप्द मधुप कवित्त॥१६॥
कुलिश (वन) के छ कोण, षट्(वेदान्त, साख्य पातजलि, न्याय, मीमांसा और वैशेषिक) तर्क षट(वैष्णव, ब्राह्मण, योगी, सन्यासी, जगम और सेवरा) दर्शन षट् (खट्टा, मीठा नमकीन, कम्टु, अष्ल और कसैला), रस, षट् (वसंत, ग्रीष्म, पावस, शरद, हेमन्त और शिशिर) ऋतु षट् (शिक्षा कल्प, व्याकरण, निरुक्त छन्द और ज्योतिष) वेदाङ्ग, षट (वेणु, बलि धधुमार, अजपाल, प्रवर्तक और मानधाता) चक्रवर्ती, श्री शङ्कर जी के पुत्र श्री स्वामी कात्तिकय जी के मुख षट भैरव, मालकौस, हिंडोल, दीपक, श्री और मेघ) राग, षटमाता (कृतिका नक्षत्र के छ तारे), षट (सधि, विग्रह, मान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय) गुण, षठ (आग लगाने वाला, विष देने वाला शस्त्र चलाने वाला, धन छीनने वाला, खेत छीनने वाला और स्त्री हरने वाला) आततायी, षट पद (भौरे के छ चरण) और कवित्त अर्थात् छन्द छप्पय) के छ. चरण---इन्हे छ की संख्या का सूचक समझना चाहिए।
सात सूचक
दोहा
सात रसातल, लोक, मुनि, द्वीप, सूरहय, वार।
सागर, सुर, गिरि, ताल, तरु, अन्न ईति करतार॥१७॥
सात, छंद, सातौ पुरी सात त्वचा, सुख सात।
चिरंजीवि ऋषि, सात नर, सप्तमातृका, घात॥१८॥