पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१९३

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पृष्ठ २३७,
सवैया २७
 

अानन सोकर सोक हियेकत? तोहित ते अति आतुर आई।
फीकी भयो सुखही मुखराग क्यों? तेरे पिया बहुबार बकाई॥
पीतमको पट क्यों पलट्यो? अलि, केवल तेरी प्रतीति को ल्याई।
केशव नीकेहि नायक सों रमि नायका बात नही वहराई॥२७॥

पृष्ठ २३६
कवित्त २८
 

खेलत ही सतरज अलिन मे, आपहि ते,
तहाँ हरि आये किधौ काहू के बोलाये री।
लागे मिलि खेलन मिलै कै मन हरे हरे,
देन लागे दाउं आपु आपु मन भाये री।
उठि उठि गई मिस मिसही जितही तित,
"केशवदास" कि सौ दोऊ रहे छवि छाये री।
चौकि-चौकि-तेहि छन राधा जू के मेरी आली,
जलज से लोचन जलद से ह्वै आये री॥२८॥

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कवित्त ३०
 

मदन बदन लेत लाज को सदन देखि,
यद्यपि जगत जीव मोहिबे को है छमी।
कोटि कोदि चन्द्रमा निबारि! बारि बारि डांरौं,
जाके काज बृजराज आज लौं हैं संयमी।
"केशवदास" सविलास तेरे मुख की सुवास,
सुनियत आरस ही सारसनि लैरमी।
मित्रदेव, छिति, दुर्ग, दण्ड, दल, कोष, कुल,
बल जाके ताके कही कौन बात की कमी॥३०॥