पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१९२

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KALA पृष्ठ २५० कवित्त १८ सोने की एकलता तुतलीबन, क्यों बरणो सुनि सकै छौ । "केशोदास” मनोज मनोहर ताहि, फले फल श्रीफल से वै॥ फूलि सरोज रह्यो तिन ऊपर, रूप निरूपम चित्त चलै च्वै । तापर एक सुवा शुभ तापर, खेलत बालक संजन के द्वै ॥१॥