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समय मुझे क्या कहना चाहिए।' क्योकि आप तो सुजान (जानकार) ही ठहरे।

८-उपायाक्षेप

दोहा

कौनहु एक उपाय कहि, रोकै पिय प्रस्थान।
तासो कहत उपाय कवि, केशवदास सुजान॥२१॥

'केशवदास' कहते है कि जब कोई उपाय काम मे लाकर, प्रियतम का प्रस्थान रोक दे, तब सुजान कवि लोग, उसे उपायाक्षेप कहते है।

उदाहरण

सवैया

भोक सबै ब्रजकी युवती, हर-गौरि समान सुहागिनि जानै।
ऐसी को गोपी गोपाल तुम्है बिन, गोकुल मे बसिबो उर आनै॥
मूरति मेरी अदीठ कै ईठ, चलौ, कि रहौ, जु कछू मन माने।
प्रेमनिक्षेमनि आदिदे केशव कोऊ न मोहि कहूँ पहिचानै॥२२॥

(विदेश जाते समय कोई गोपी श्री कृष्ण से कहती है कि) मुझे तो ब्रज की युवतियाँ शिवजी और पार्वती जी के समान, आपकी अर्धाङ्गिनी समझती है। हे गोपाल! ऐसी कौन सी गोपी है जो आपके बिना ब्रज मे रहने का विचार अपने मन मे लावे। इसलिए किसी उपाय से मेरी मूर्ति को अदृश्य करके (जिससे मै दिखलाई न पडूँ) आपको जैसा अच्छा लगे करे, चाहे रहे, चाहे जाय। (केशवदास गोपी की ओर से कहते है कि, आप मुझे ऐसा अदृश्य बनाइएगा कि मुझसे प्रेम करने वाली तथा मेरा कुशल चाहने वाली आदि जितनी स्त्रियाँ हैं, वे मुझे किसी भी तरह से, कभी पहचान न सकें।

९-शिक्षाक्षेप

दोहा

सुखही सुच जहँ राखिये, सिखही सिख सुखदानि।
शिक्षाक्षेप को बरणि, छप्पय बारह बानि॥२२॥