(पार्वतीजी की सखी उन्हे समझाती हुई कहती है कि) हे गौरी! कौन जाने तुम्हारे प्राणनाथ (शिवजी) के अग पर क्या बीते, इसलिए तुम किसी प्रकार भी टेढी भौंहे न करो अर्थात मान न दिखलाओ।
[इसमे 'को जानै ह्वै जाय कह' भविष्य सूचक क्रिया है, अत यह भावी प्रतिषेध है]
वर्तमान प्रतिषेध
कोविद! कपट नकार शर, लगत न तजहु उछाह।
प्रतिपल नूतन नेहको, पहिरै नाह सनाह॥५॥
नायक को समझाती हुई सखी कहती है कि हे कोविद! इन न कार (नहीं, नहीं करने के) वाणो के लगने से अपना उत्साह न छोडो। क्योकि नाह (नायक) तो प्रतिपल वयेस्नेह का कवच पहनते हैं।
[इसमे 'न तजहु' बर्तमान कालिक क्रिया है, अतः यह वर्तमान प्रतिषेध है]
आक्षेप के भेद
पेम, अधीरज, धीरजहु, सशय, मरण, पकास।
आशिष, धर्म, उपाय कहि, शिक्षा केशवदास॥६॥
'केशवदास' कहते है कि (आक्षेप मे प्रतिषेध (रोक) का कार्य प्रेम, अधैय, धैर्य, सशय, मरण, आशिष, धर्म, उपाय और शिक्षा द्वारा किया जाता है।
१---प्रेमाक्षेप
दोहा
प्रेम बखानतही जहाँ, उपजत कारजबाधु।
कहत प्रेम आक्षेप तह, तासों केशव साधु॥७॥
'केशवदास' कहते है कि प्रेम का वर्णन करते ही, कार्य मे बाधा उत्पन्न हो जाय, वहाँ साधु (विद्वान) लोग 'प्रेमाक्षेप' बतलाते है।