उदाहरण (२)
कवित्त
तमोगुण ओप तन ओपित, विषम नैन,
लोकनि विलोप करै, कोप के निकेत है।
मुख विष भरे, विषधर धरे, मुडमाल,
भूषित विभूति, भूत प्रेतनि समेत हैं।
पातक पता के युत, पात की ही को तिलक,
भावै गीत काम ही को, कामिनि के हेत है।
योगिन की सिद्धि, सब जग की राकल सिद्धि,
'केशौदास' दासि ही ज्यौ दासन को देत है॥२६॥
उनका शरीर तमोगुण की शोभा से भूषित है। वह स्वय विषमनैन अर्थात् तीन नेत्र वाले है। लोको का नाश करनेवाले (प्रलयकारी) है तथा कोप (क्रोध) के तो घर ही है अर्थात् बडे क्रोधी है। मुख मे विष रखे हुए है, शरीर पर साँपो को धारण करते है गले मे मुडमाला पहने है, अग मे भस्म लगी रहती है और भूत-प्रेतो का साथ रहता है। उन्हे पिता के शिर काटने का पाप लगा है और पातकी (कलकी) चन्द्रमा को ही तिलक बनाये हुए है और जिन्हे काम का ही गीत अच्छा लगता है (अर्थात् जिन्हे काम-दहन की प्रशसा ही सुहाती है) तथा जो कामिनी (गौरी पार्वती) के हितैषी है। 'केशवदास' कहते है कि स्वय अमगलरूप होते हुए भी वह अपने दासो भक्तो को योगियो की सिद्धि तथा ससार की सभी सिद्धियो को, दासी की भाँति दे डालते है।
उदाहरण (३)
सवैया।
बाजि नही, गजराज नही, रथपत्ति नहीं, बल गात विहीनो।
केशवदास कठोर न तीक्षण, भूलिहू हाथ हथ्यार न लीनो॥
जोग न जानति मंत्र न जाप, न तत्र न पाठ पढयो परवीनो।
रक्षक लोकन के सुगॅवारिन, एक विलोकनि ही वश कीनो॥२७॥