जो वर्णन करते समय विरोध सा जान पडे, परन्तु अर्थ करने पर विरोध न हो उसे सभी बुद्धिमान, विरोधाभास कहते है।
उदाहरण
कवित्त
परम पुरुष कुपुरुष सग शोभियत,
दिन दानशील पै कुदान ही सो रति है।
सृर कुल कलश पै राहु को रहत सुख,
साधु कहै साधु, परदार प्रिय अति है।
अकर कहावत धनुष धरे देखियत,
परम कृपालु पै कृपान कर पति है।
विद्यमान लोचन द्वै, हीन वाम लोचन सों,
'केशौराय' राजाराम अद्भुत गति हैं॥२३॥
'केशवदास' कहते है कि राजा रामचन्द्र जी को गति अद्भुत है। उन्हे स्वयं परम पुरुष होते हुए भी कुपुरुषो (पृथ्वी के मनुष्यो) का सग अच्छा लगता है। प्रतिदान दान देते है परन्तु कुदान (पृथ्वीदान) मे ही अधिक रुचि रहती है। वह सूर्य-कुल-कलश अर्थात् सूर्यवश मे श्रेष्ठ है परन्तु राहु (मार्ग) का उनके राज्य मे सुख रहता है। साधु अथवा सज्जन उन्हे सज्जन कहा करते है परन्तु उन्हे वह परदार प्रिय (लक्ष्मी के वल्लभ) है। अकर (बिना हाथ वाले) कहलाते है पर हाथ मे धनुष धारण किये रहते है। परम कृपालु है, परन्तु कृपान कर पति (कृपाणधारियो के स्वामी है)। उनके दो नेत्र विद्यमान है परन्तु वाम-लोचन (कुलटा स्त्री) से हीन है (अर्थात् उससे सम्पर्क नहीं रखते)।
[ इस कवित्त मे--पहले परम पुरुष होते हुए भी कुपुरुष अच्छे लगते है, दानशील होते हुए भी कुदान से रति रखते है, सूर्यकुल के होकर भी राहु को सुखदायी है, साधु कहलाने पर भी परदार प्रिय है, अकर (हाथ रहित) होने पर, धनुष धारण किये है और आँखे रहने