१---स्वभाव
जाको को जैसो रूप गुण, कहिये ताही साज। तासों जानिस्वभाव कहि, बरणत है कविराज॥८॥
जिस व्यक्ति या वस्तु का जैसा रूप अथवा गुण हो उसको उसी प्रकार से वर्णन करने को कविराज 'स्वभाव' या 'स्वभावोक्ति' कहते है।
उदाहरण (१)
रुप वर्णन
(कवित्त)
पीरी पीरी पाट की पिछौरी कटि केशोदास,
पीरी पीरी पागै पग पीरीये पनहियां।
बड़े-बड़े मोतिन को माला बड़े-बड़े नैन,
भृकुटी कुटिल नान्ही-नान्ही बघनहियां।
वोलनि, चलनि मृदु हॅसनि चितौनिचारु,
देखत ही बनै पै न कहत बनैहियां।
सरजू के तीर तीर खेलै चारों रघुवीर,
हाथ द्वै द्वै तीर राती रातियै धनुनियां॥९॥
'केशवदास' कहते है कि पीले पीले कपडे की पीली-पीली पिछौरी कमर मे कसे हुए है, पीली ही पगडियाँ पहने हुए हैं और पैरो मे भी पीले ही जूते पहने है। बड़े-बड़े मोतियो की मालाएँ गले मे पडी हुई है। बडी बडी उनकी आँखें हैं भौहे टेढी है और छोटे छोटे बाघ के नख पहने हैं। उनका बोलना, चलना, मृदु मुसकाना और सुन्दरता के साथ देखना देखते ही बनता है, कहते नहीं बनता। सरयू के किनारे रघुवश के चारो कुमार (श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुधन) खेल रहे है। उनके हाथो मे लाल-लाल तीर हैं और लाल-लाल ही धनुष भी हैं।