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सेनानी के सट पट, चन्द्र चित चटपट,
अति अति अटपट अतक के ओक है।
इन्द्रजू के अकबक, धाताजू के धकपक,
शंभुजू के सकपक 'केशौदास' को कहै।
जब जब मृगया को राम के कुमार चढ़ै,
तब तब कोलाहल होत लोक लोक है॥३५॥

जब जव मृगया के लिए श्रीरामचन्द्र जी के कुमार ( लव और कुश ) जाते है, तब तब ससार मे खलबली मच जाती है। कामदेव के मन मे उदासी छा जाती है ( क्योकि उसे इस बात का भय लगता है कि मेरी सवारी के मकर का शिकार न कर लें ) और पार्वती के पर्वत-कैलाश की तो गली-गली मे रोक हो जाती है। ( क्योकि वहाँ पार्वती जी को भय होता है कि मेरी सवारी सिंह का आखेट न कर बैठे, या हाथी के धोखे श्रीगणेश जी को न बाध डालें )। सेनानी अर्थात् शिवजी के बड़े पुत्र सोम कार्तिकेय जी सटपटा गये है कि मेरे मोर की खबर न ले बैठे, चन्द्रमा के मन मे चटपटी मची है कि मेरा हिरन न मारा जाय और यमराज महाराज के घर तो बडी अटपट कठिनाई का अनुभव होने लगता है क्योकि उन्हे अपने भैंसे की चिन्ता सवार हो जाती है कि कहीं वही उनके दाव मे न आ जाय। इन्द्र अकबका जाते है कि मेरा ऐरावत हाथी उनकी दृष्टि मे न आ जाय, ब्रह्माजी के मन मे अपने हस के लिए धक पक मच जाती है और 'केशवदास' कहते है कि श्री शकर जी अपने नदी के लिए ऐसे सकपका जाते हैं कि उसका वर्णन कोई क्या कर सकता है।

जलकेलि वर्णन

दोहा

सर, सरोज, शुभ, शोभ भनि, हिय सों पिय मन मेलि।
गहिबो गत भूपणनिको, जलचर ज्यों जल केलि॥३६॥