आखेट का वर्णन करते समय जुर्रा, बहरी, बाज, चीता, कुत्ता, सचान, सहर, बहेलिया, भील, नीले कुरते को पहनने का नियम, बन्दर, बाघ, बाराह (सूअर), मृग (हिरन), मछली आदि वन जन्तुओं का मारना, फँसाना तथा बेघना आदि का उल्लेख करना चाहिए।
उदाहरण (१)
(कवित्त)
तीतर, कपोत, पिक, केकी, कोक, पारावत,
कुररी, कुलंग, कल हंस गहि लाये है।
केशव शरभ, स्याह गोस, सिह रोष गत,
कूकरन पास शश शूकर गहाये हैं।
मकर समूह बेधि, बांधि गजराज मृग,
सुन्दरी दरीन भील भामनीन भाये हैं।
रीझि-रीभि गुंजन के हार पहिराये देखो,
काम जैसे राम के कुमार दोऊ आये हैं॥३४॥
तीतर, कबूतर, चिक, मोर, चकवा, पारावत (पिंडकी), कुररी, मुर्गा और सुन्दर हस को पकड लाये है। 'केशवदास' कहते है कि शरभ, स्याह गोस, ऋद्ध सिंह तथा कुत्तो के द्वारा उन्होने खरगोश और शूकरो को भी पकड़ लिया है। मगरो के समूह को बेधकर तथा गजराज और हिरनो को बाँधकर लाते समय सुन्दर गुफाओ मे भील की स्त्रियो के मनो को अच्छे लगे, इसलिए उन्होने प्रसन्न हो-होकर घु घुंचियो के हार पहना दिए है। दोनो कामदेव के समान रूपवान श्रीरामचन्द्र के कुमार (बव कुश) आखेट करके आये है।
(२)
कवित्त
खलक में खैल भैल, मनमथ मन ऐल,
शैलजागैल के शैल गैल प्रति रोक है।