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तड़ाग वर्णन

दोहा

ललित लहर, खग, पुहुप, पशु, सुरभि, समीर, तमाल।
करभकेलि, पंथी प्रकट, जलचर वरणहुँ ताल॥१६॥

ताल का वर्णन करते समय सुन्दर लहरें, जल-पक्षी, पुष्प, जलपशु, सुन्दर सुगन्धितवायु, तमाल आदि वृक्षो, हाथियो के बच्चो की क्रीड़ा, यात्रियो तथा जलचरो का वर्णन कीजिए।

उदाहरण

कवित्त

आपु धरैं मल औरनि केशव निर्मलगात करैं चहुँओरैं।
पंथिन के परिताप हरैं हठि, जे तरुतूल तनोरुह तोरैं॥
दुखहु एक स्वभाव बड़ो, बड़भाग तड़ागानि को बित थौरैं।
ज्यावत जीवनिहारिनिको, निज बंधनकै जगबंधन छोरैं॥१७॥

'केशवदास' कहते है कि तालाब दूसरो का मल स्वंय लेकर, चारो ओर के जीवो को निर्मल गात (स्वच्छशरीर वाला) बना देते है। जो पथिक किनारे के पेड़ और उनकी शाखाओ को हठपूर्वक तोड़ते है, उनके दुःखो को भी दूर करते है। (उन्हे भी निर्मलजल मे स्नान करा कर स्वस्थ बनाते हैं )। इन बड़भागी तालाबो के सुन्दर स्वभाव को देखो कि वे अपने थोड़े से धन से, अपने जीवन (जल) को हरने वाले को भी जिलाते हैं और अपने बन्धन से ससार के बन्धन को दूर करते हैं अर्थात् बाँध आदि अपने ऊपर बँधवा कर स्वंय तो बंधन मे पड़ते हैं और उससे संसार के लोगो को जो पार करने मे रुकावट होती है, उसे दूर करते हैं अथवा पुराणो के अनुसार तालाबादि पर बाँध बाधने वालो को मुक्ति प्रदान करते हैं।