और अपना निर्माण कार्य बन्द नहीं किया। परन्तु जब उन्होने वीर वृतधारी वीरबल को बनाया तो उन्हे बनाने के बाद वह कृतकृत्य हो गये और अपना करतारपन इनको देकर दोनो हाथो से ताली बजा दी। (अपना समकक्ष व्यक्ति पाकर और अपने कार्य का भार उसे देकर लोग ताली बजाकर कहते है कि 'चलो छुट्टी हुई' और सतोष की सास लेते है, यही भाव है)
विभीषण का दान वर्णन।
केशव कैसहु बारिधि बांधि कहा भयो ऋच्छनि जो छितिछाई।
सूरज को सुत बालि को बालक को नल नील कहो यहि ठाई॥
को हनुमन्त कितेक बली यमहुँ पहँ जोर लई जो न जाई।
दूषण दूषण भूषण भूषण लक विभीषण के मत पाई॥७९॥
'केशवदास' कहते है कि किसी प्रकार समुद्र का पुल बाधकर रीछ लका की सब भूमि पर छा गये तो क्या हुआ। सुग्रीव तथा नल नील ने भी जाकर वहाँ क्या किया? हनुमान जी कितने जैसे, बलवानो से भी जो प्राप्त न की गई, उसी लका को दूषण के दूषण और भूषण के भूषण श्री रामचन्द्र ने विभीषण के मत से ही प्राप्त की।