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कविवचनसुधा।

नीको गङ्ग को बजैन वेन ही को नीको ऐन नीको देव को सुपैन मैन साज को। दण्ड नीको दण्डि को घमण्ड गोडही को नीको खण्ड नीको मारत अखण्ड नीको राज को ।। ६३ ।।

कारे घुघुरारे कच बिकच सकुच तजि नैन ये हमारे छबि छैल फाँस फॅसिगो। उर बनमाल चारु चन्दन रुचिर माल लोचन विशाल भाल हेरि हिये धंसिगो ॥ कृष्णसिंह सांवरी सी मूरति मनोजमई निशि दिन हेरि हेरि अङ्ग अङ्ग रसिगो। कहो सब डक दै न रहो कछु शंक अब मों मन मयंक में कलङ्क कान्ह बसिगो ॥ ६४ ॥

सवैया।

धनि हैं गे वे तात ओ मात जयो जिन देह धरी सो घरी धनि हैं। धनि है हग जेऊ तुम्हें दरसै परसै कर तेऊ बड़े धनि हैं। धनि है ज्यहि ठाकुर ग्राम बसो जहँ डोलो लली सो गली धनि हैं। धनि हैं धनि हैं धनि तेरो हितू ज्यहि की तू धनी सो धनी धनि है ॥

कबित्त।

तूहीतो कहै री मनमोहन लखे मैं मनमोहन लखे को एको लक्षण लहोती तैं । वसिये गोबिन्द सुधि बुधि है सबै तो तोहि दीन्हीं ना अजौ लों लोक-लाजहिं चुनौती ते ॥ चङ्ग होतो चित्तरी कुरङ्गनैनी कैसे गन अङ्गनि अनङ्ग बारी अगिनि अगोती तै । बावरा भई है तै न सांवरी सबीह देखी सावरी साह देखि बावरी न होती तें ॥ ६६ ॥