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कविवचनसुधा।

नित उठि आनि इत बोलि बोलि जात वेऊ झूठ भये बोल सबै बायस बिहन के। पतिया तिहारी तेऊ झूठ ये निवाज कबि झूठे दृग फरकै हमारे बाम अङ्ग के ॥ कारे काग झूठे कारे कागदौ तिहारे झूठे कारे ये हमारे नैन झूठे बिन ढङ्ग के। कान्ह एक तुमही न मिले हमैं झूठे सब झूठे मिले दई के सँवारे कारे रङ्ग के ॥ ४७ ॥

को हौ ज्योतिषी है। कछू ज्योतिष विचारि देखो याही धाम धाम काम जाहिर हमारो तो । आओ बैठि जाओ पा छुआओ पान खाओ नीके चित्त सों सुचित्त ढकै गणित विचागे तो ॥ ठाकुर कहत मेरे प्रेम की परिच्छा शिच्छा इच्छा को प्रतीति ताहि नीके निरधारो तो । मेरो मन मोहन सो लागि रह्या भाति मांति मोसों मन मोहन को लागिहै विचारो तो॥४८॥

ज्योतिष के धारी कह्यो पण्डित पुकारी हम देख्यो है बिचारी भारी भाग है तिहारो तो। तेरे रस बस कान्ह यश को सराहत हैं मिलिबे के काज धेनु बन बन चारो तो ॥ कहत अनन्द यह चन्दमुखी साच मान नन्द डर मान्यो तासो भयो है नियारो तो। धीर नेक धारो उर टारो दुख सारो सुख मिले नन्दवारो प्यारो ऐसही बिचारो तेरे ॥ ४९॥

भृकुटी तनी को सीसफूल की कनी को सोभा सकल सनी को ऐसो फूलो कंज फीको है । मैन की मनी को मैन-बान की अनी को पैन देन है धनी को हास हुलसनि ही को है ।। रूप अवनी को कहा रमा-रमनी को गजगति गमनीको लखि नीव