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कविवचनसुधा।


अन्त की बोल सुनावत कोकिल पीव कहाँ पपिहा गनगन्त की । गन्त की औध के घोस अली गनपाल सबै शरणागत तन्त की। तन्त की करिति कन्त असन्तन ताप परी बधिकाई बसन्त की।

सवैया ।

गुल गुललाला औ गुलाब गुलचीनी गुलदाउदी विशद गुलसब्बो बिलगात है । चम्पक चमेली चारु चन्दन रु चांदनी से केवरा कुसुम केतकी के सरसात है । बेला बेल विशद बिसाल बेली सोहियत रस के बिसाल जूही जूथिक जनात है । सूरज. मुखी औ स्याम सेमर लसत नम शरद बदर फूल बाग सो लखात है ॥ ६ ॥

छप्पै ।

जहां उदित कचराज तहां देखत मुख इन्दै । जहां इन्दु को बास तहां फूल्यो अरबिन्दै ॥ जहां बसत सु मनोज तहा विवि शम्भु छवासी । पञ्चानन कटि जहां तहां गममत्त गवासी॥ गोपी कवित्त अचरज यह अरि अरि सब संगै रहत । अति राजनीति तियतन नगर रिपुरामिलि छबि को गहत ॥ न कछु क्रिया बिन विप्र न कछु कादरमिय छत्री। न कछु नीति बिन नृपति न कछु अच्छर बिन मंत्री ।। न कछु बाम बिन धाम न कछु गथ बिन गरुआई । न कछु कपट को हेत न कछु मुख आपु बड़ाई ॥