पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/४१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०
कविचचनसुधा।

हॅसि रामलला मनमोह लियो सब जनक नगरकी नागरिया। ढाल ढरन हरि शरण साग करि करभ कुलह अँग रचा है। तरकस तीर सतो गुण सर भरि प्रेम फेट कटि खच्चा है ॥ ध्यान धनुष गुरुज्ञान पुरकसी नाम चौकसी बच्चा है । रामलला समसेर सुरति गहि सूर सिपाही सच्चा है ॥ ६२ ॥ हाल बेहाल हाय हरदम में सही इश्क दी चोट है। कारी घाव खाय दिल अन्दर दिलवर दिल पर लोटै हैं ।। निगर जिका क्या करै फकीरी दिल दिलगीरी मोटें हैं। रामलला सिर इश्क हाथ दिया फिर क्या करना ओटै है।।६३॥

पद गाने का।

गुरूनी ख़ब सिखलाई रटन सियाराम रटने की । जुगुति मजबूत बतलाई सकल जंजाल कटने की ॥ अगम की गैल दिखलाई दसा मति गति पलटने की। अजूबा चाख चखलाई न है अब चाह घटने की ॥ दिलअन्दर रेख खचलाई पिया छवि है जो जटने की। अविद्या मूल विचलाई गरूरी फौज हटने की। लिया इकरार लिखवाई जान मैदान डटने की ॥ कपट की टाटी खिसलाई बिरह बस्तर के फटने की। लगन क्या रामलला लाई गरे प्यारे लपटने की ॥६४ ॥ हम हैगे इश्क दीवाने हमन को होसदारी क्या । रहैं आजाद इस जग से हमन दुनियां से यारी क्या १ ॥ खलक सब नाम अपने को बहुत कुछ सिर पटकते हैं ।