सवैया।
निसि बासर श्याम स्वरूप लखै पल लागत चित्त अचेत गहैं ।
प्रतिबाद करै तो वही गुन को बिमुखान ते नाहीं मिलाप चहै ॥
गनपाल रसज्ञ जो ता रस को सखि ताही सों नेक प्रमोद लहैं ।
सत नेह की बात सतानन में असतान के जी में परै सो कहैं ||३||
कवहूं मुख की छवि पै अरुझै सुरमैं जल बेग बहावो करें ।
तन पानिप पै छन देत मनै कुल लाज सुबुद्धि भुलावो करें ।
गनपाल सदा लिन स्वारथ मों चित प्रेम नदी उमगावो करें।
सजनी तन भूप अनूप बने हग देखत रूप बिकावा करें ।। ४ ॥
लखि कोमल मंजु सरोज प्रभा मुख सेति सदा तरसोई करें ।
तन पानिप चन्द छटा दरसे सुखसिन्धु हिये सरसोई करें ।
गनपाल सखी बिरहागिनि सो जगजाल सबै झरसोई करै ।
मन चेत को देत सहेत तऊ दृग आनन्द पै बरसोई करें ॥ ५ ॥
चारि हूं ओर ते पौन झकोर झकोरनि घोर घटा घहरानी ।
ऐसे समै पदमाकर कान्ह की श्रावत पीत-पटी फहरानी ॥
गुज की माल गोपाल गरे ब्रनबाल बिलोकि थकी थहरानी ।
नीरज ते कढ़ि नीर-नदी छवि छीजत छीरज पे छहरानी ॥६॥
दन्त की पङ्गति कुन्दकली अधराधर पल्लव खोलन की ।
चपला चमकै धन विज्जु लस छबि मोतिन माल अमोलन की ॥
घुघुरारी लटें लटकै मुख ऊपर दुति दीपति लाल अतोलन की ।
नवछाउरि प्रागा करै तुलसी बलि जाउं लला इन बालन की।