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कविबचनसुधा।


महिमण्डल में तिमिर पर दावा रवि-किरनि समाज को। उत्तर दखिन देश पूरब औ पश्चिम लौ जहां बादशाही तहा दावा शिवराज को ॥ ८३॥

आगमन सुनत सुजान प्राण प्रीतम को आनि सजे सखिअन सुन्दरी के आस पास ॥ कहै पदमाकर त्यो पन्नन के होज हरे ललित लवालब भरे है जलबास बास ॥ गूधि गूंधि गेंदे गज गौहरन गंजगुल गजक गुलाबी गुल गजरे गुलाब पास । खासे खसबीजन के ग्वानि खानि खाने खुले खूबी के खजाने खसखाने खूब खाम खास ॥ ८३ ॥

चन्द की कला सी कैसी भानु की प्रभा सी जैसी भानु की प्रभा सी कैसी दीपसिखा ज्वाल है । दीपसिखा जाल कैसी कुन्दन लता सी जैसी कुन्दनलता सी कैसी छबि छटा हाल है। छविछटा हाल कैसी पोखरान लरी जैसी पोखराज लरी कैसी हेम कंज-नाल है। हेम कंन नाल कैसी सोनजुही माल जैसी सोनजुही माल कैसी जैसी वह बाल है ॥ ८५ ॥

खासी खासी कोठरिन में राउरी सौ सेजन सों आसपास अगर कपूर बगरे रहैं । दरन में परदे गलीचन सो सामा भूमिसामा सुबरन के जड़ाऊ सो जड़े रहै । ऐसे ठौर कन्तन सों युवती हेमन्तही मै पौढे पलका पै दोऊ आनन्द भरे रहै । सीतल सपट्ट मांह कपटे समूह सुख लपटे दुसालन में चपटे परे रहै ॥

कब दिन राति होत सांझ परमात यह जानत न बात कोऊ रंग के रसाला मैं। कहै पदमाकर जुराफा से जुरेई रहैं जागल