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कविवचनसुधा।


आनद को कन्द जिन मोहे नंद नन्दन को कहां चन्द मन्द कहां तेरो मुख साहनो ॥ ४५ ॥

भाग भरे आनन अनूप दाग सीतला के देव अनुराग झिझिया से झमकत हैं । नजरि निगोडिन को गड़ि गड़ि गडे पर आड़े करि पै न डीठि लोभ लपकत है || जोबन कि मान मुख खेत रूप बीज बोयो बीज भरे बूदन अमन्द दमकत है बदन के बैझे पै मदन कामनैनी के चुटारे सर चोटन चटा से चमकत है ॥ ४६॥

बदन सुराही में छबीली छवि छाक्यो मद अमर पियाले छिन छिन में गहत हैं। अलसाय पोढ़त कपोल परजक पर कबहूं गजक जानि चखन चहत है ॥ प्रेमनग साथी ये तो सदा रहै अक मरे छक्योई रहत काऊ कळू न कहत है । झूकि परै बात के कहे त अनखात न्यारो बेतरि को मोती मतवारोई रहत है ॥ ४७॥

छाड्यो चल सागर बिधायो तन आप आय अधर के बीच रह्यो औरन चहत हैं। विधि के बनाउ बस आनि परो बेसरि में बन्यो है सँयोग मणि कंचन सहत है ॥ पूरन प्रताप चन्द पायो है मुखा- रबिन्द येतो कहा लहे कन्त नेतो तू लहत है । प्यारी के बदन पिये मोती मतवारी सदा झूमत रहत है ॥ ४८॥

रतिहू की मति पतिहू की ललचात अति मैनहू के नैन देख लालच भरति हैं। सुन्दर सरस मुभ सौरभ सहन सोहै पै मदन जू को मद