पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/६३

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- दूहा कामदेव अवतार हुअ सहस किरन झलहल कमल सुनत श्रवन प्रथिराज जस तन मन चित चहुवॉन पर सुअ सोमेसर नंद | रिति समीप वर विंद ॥ २७ ॥ उमग बाल विधि अङ्ग । बस्यो सुरतह रङ्ग ॥ २८ ॥ क्रियो बसंत | बेस बिती ससिता सकल आगम मात पिता चिंता भई सोधि जुगति कौ कंत ॥ २६ ॥ कवित्त समझाय बात गढ़ तू ग्ग तस ॥ असेसह । सोधि जुगति को कंत कियो तब चित्त हों दिस | लयौ विप्र गुर बोल कही नर नरिंद्र नरपती बड़े सीलवन्त कुल सुद्ध देह तब चलन दंडु दुज्जह लगन सगुन आनंद उछाह समुदह सिपर बजत नट् सवा लष्ष उत्तर राजत राज कुमोद नारि केलि फल परठि दई जु कन्या बचन दूहा कन्या सुनसह ॥ बंद दिय अप्प तन । नीसान घन ॥ ३० ॥ सयल कमॐ गढ़ दूरंग । मनि हय गय द्विम्ब अभंग ॥ ३१ ॥ दुज चौक पूरि मनि मुति । बर अति अनन्द करि जुत्ति ॥ ३२ ॥ भुजंगप्रयात बिहसित बरं लगन लिन्नौ नरिदं, बजी द्वार द्वारं सु आनन्द दुई ॥ ३३ ॥ गर्दन गढ़ पत्ति सब बोलि नुत्ते, सर्व आइयं भूप कटु बस जुते ॥ ३४ ॥