यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५)
५३—विज्जका | ५९—शीला भट्टारिका |
५४—विशाखदेव | ६०—शूद्रक |
५५—व्यास | ६१—श्रीहर्ष |
५६—शकुक | ६२—सुबन्धु |
५७—शंकराचार्य | ६३—हर्षदेव |
५८—शिवस्वामी | ६४-क्षेमेन्द्र |
अंत में संस्कृत के कुछ अन्य कवियों के चुने हुये श्लोकों का एक छोटा, किन्तु बड़ा मनोहर संग्रह भी जोड़ दिया गया है। यह भाग तैयार है। दूसरा भाग छप चुकने पर इसका छपना प्रारम्भ होगा।
साहित्य-भवन-ग्रंथमाला
की
नियमावली
१—आठ आने "प्रवेश फीस" देकर प्रत्येक सज्जन इस ग्रन्थमाला के स्थायी ग्राहक बन सकते हैं। यह आठ आना न तो कभी वापस दिया जाता है, और न किसी ग्रन्थ में मुजरा दिया जाता है।
२—स्थायी ग्राहकों को ग्रन्थमाला के कुल ग्रन्थ—पूर्व प्रकाशित और आगे प्रकाशित होने वाले—पौनी कीमत में दिये जाते हैं।
३—ग्राहक बनने के समय से पहले प्रकाशित हुये ग्रन्थों को लेना न लेना ग्राहक की इच्छा पर है। परन्तु आगे निकलने वाले ग्रन्थ उन्हें लेने पड़ते हैं।