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का अर्थ तो हिन्दीभाषा और देवनागरी अक्षरों में रहेगा ही, हम चाहते हैं कि मूल भी देवनागरी अक्षरों में ही रहे। इसमें एक लाभ तो यह है कि संसार देवनागरी अक्षरों की शक्ति से परिचित हो जायगा। दूसरा लाभ यह है कि जो लोग केवल हिन्दीभाषा जानते हैं वे भी अन्य भाषाओं की कविता कंठस्थ कर सकेंगे और आवश्यकता पड़ने पर पढ़ सकेंगे। किन्तु हमारे कुछ मित्रों का विचार इसके विपरीत है। वे कहते हैं कि विदेशी भाषा की कविता का मूल विदेशी अक्षरों में रहे और उनका अर्थ हिन्दी में दिया जाय। इस विषय में हम कविता-कौमुदी के पाठकों की भी सम्मति चाहते हैं। जो सज्जन इसे पढ़ें, वे यदि अपनी सम्मति लिख भेजेंगे तो हमको उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करने में अधिक सुगमता होगी।


 

कविता-कौमुदी
(दूसरा भाग-हिन्दी)

इस भाग में जिन कवियों की सचित्र जीवनी और चुनी हुई कविताएँ संगृहीत हैं; उनमें से कुछ के नाम नीचे लिखे जाते हैं:—

१—हरिश्चन्द्र ६—प्रतापनारायण मिश्र
२—बदरी नारायण चौधरी ७—विनायक राव
३—लाला सीताराम ८—श्रीधर पाठक
४—अम्बिका दत्त व्यास ९—रामकृष्ण वर्मा
५—नाथूराम शकर शर्मा १०—जगन्नाथ प्रसाद (भानु)