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कौमुदी-कुञ्ज
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लागैं नहीं संग जागैं न नौकरीभागैं कहूँ नृपको लखि साँकर।
चोर चमार से चूल्हे परैं यहि भाँति चमार से चूतिया चाकर।

३६

सीस कहै परि पाय रहौं भुज यों कहै अङ्क तै जान न दीजै।
जीह कहै बतियाई कियौ करौं स्रौन कहै उनही की सुनीजै।
नैन कहै छवि सिन्धु सुधारस को निसिवासर पान करौ जै।
पायहुँ प्रीतम चित्त न चैन यों भावतो एक कहा कहा कीजै।

३७

अम्बर बीच पयोधर देखि कै कौन को धीरज सो न गया है।
भजन जू नदिया यहि रूप की नाव नहीं रवि हूँ अथयो है।
पंथिक राति बसो यहि देस भलो तुमको उपदेस दयो है।
या भग बीच लगै वह नीच जु पावक में जरि प्रेत भयो है।

३८

तुम नाम लिखावती ही हम पै हम नाम कहा कहो लीजियेजू।
अब नाव चले सिगरे जल में थल में न चले कहा कीजिये जू।
कवि किंचित औसर जो अकती सकती नहीं हाँ पर कीजियेजू।
हम तो अपनो बर पूजती हैं सपने नहिं पीपर पूजिये जू।


 

छप्पय

जिहि मुच्छन धरि हाथ कछू जग सुयश न लीनो।
जिहि मुच्छन धरि हाथ कछू पर काज न कीनो।
जिहि मुच्छन धरि हाथ कछू पर पीर न जानी।
जिहि मुच्छन धरि हाथ दीन लखि दया न आनी।