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कौमुदी-कुञ्ज
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ज्योंहींउठी उनके मिलिबे कहँ जागि परी पिय पास न पाये।
"मीरन" और तो सायकै खोवत मैं सखि प्रीतम जागि गँवाये।

२६

भात में लोन पहीति में पाथर डारि करैं सब छूति ही छूकर।
माँगेहूँ सों परसें न कछू खल मैले महा मल को मनो सूकर।
व्यंजन या विधि के हैं रचे मुख सौंह किये मन आवत थूकर।
ये कबहूँ नहिँ दूबर होत रसोई के विप्र कसाई के कूकर।

२७

दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लै दूरि दिखायो।
टोनों सो नोन धरघो कछु आनि सबै तरकारी को नाम गनायो।
विप्र बुलाय पुरोहित को अपनी विपती सब भाँति सुनायो।
साहसी आज सराध कियो सोभली विधिसोंपुरखा फुसलायो॥

२८

बंधु विरोध करें सिगरो झगरो नित होत सुधारस चाटत।
मित्र करै करनी रिपुकी धरनी घर देखि न न्याउ निपाटत।
"राम" कहें विषहोतसुधाधरनारिसतीपतिसों चित फाटत।
भा विधिना प्रतिकूल जबै तक ऊँट चढ़े पर कूकर काटत।

२९

साल भरे पर पथ्य लियो षट मास उपास किया फिर ऐंठ्यो।
"माधो" कहै नित मैल छुड़ावत दाँतन दीन्हे तुराय धौं कैठ्यो।
कोऊ कहूँक जो देइ खवाइ तौ कै कर डारत सोच में पैठ्यो।
मूड़ घुटाय औ मूछ मुड़ाय त्यों फस्त खुलाय तुलाचढ़ि बैठ्यो।

३०

चीँटि न चाटत मूसे न सूँघत बास ते माछी न आवत नेरे।
आनि धरे जब ते घर में तबते रहै हैजा परोसिन घेरे।