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कौमुदी-कुञ्ज
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ऐसी बनी नखतेँ सिखलौं "ब्रजचंद" ज्योंक्रोधसमुद्रतेंकाढ़ी।
ईंट लिये बतराति भतार सों भामिनि भौन में भूत सी ठाढ़ी।

लोहे की जेहरि लोहे की तेहरि लोहे की पाँव पयेंजनि गाढ़ी।
नाक में कौड़ी औ कानमें कौड़ी त्यों कौड़िन की गजरागति बाढ़ी।
रूप मैं बाकी कहाँ लौं कहौं मनो नील के माठमें बोरिकैकाढ़ी।
ईट लिये बतलाति भतार सों भामिनि भौन में भूत सी ठाढ़ी।

"भूप" कहैं सुनियो सिगरेमिलि भिच्छुक बीच परौ जिन कोई।
कोई परौ ता निकोई करौ न निकोई करो तौ रहौ। चुप सोई।
जानत हौ बलि ब्राह्मण की गति भूलि कुपंथ भली नहि होई।
लेइ कोऊ अरु देह कोऊ पर शुक्र ने आँखि अकारथ खोई।

राधिका माधव एक ही सेज पै धाइलै सोई सुभाय सलोने।
पारे "महाकवि" कान्ह के मध्य में राधे कहै यह बात न होने।
साँवरे सों मिलि ह्वै हैं न साँवरी बावरी बात सिखाई है कौने।
सोने को रंग कसौटी लगै पै कसौटी को रंग लगै नहि सोने।

बात चली चलिवे को जहाँ फिर बात सुहानी न गात सुहानी।
भूषण साज सकै कहि को "महराज" गयो छुटि लाजकोबानी।
दो कर मीड़ति है बनिता सुनि प्रीतम को परभात पयानो।
आपने जीवन को लखि अंत सु आयु की रेख मिटावति मानो।

१०

काऊ न आयो उहाँ ते सखीरी जहाँ "मुरलीधर" प्राणपियारे।
याही अंदेसे में बैठी हुती उहि देस के धावन पौरि पुकारे।