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कौमुदी-कुञ्ज
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उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान होत छन घन जोति
छटा छटकि छटकि जात। सोर करैं चातक चकोर पिक
चहूँ और मोर ग्रीव मोरि मोरि मटकि मटकि जात॥ साधन
लौं आवन सुनो है घनश्याम जू को आँगन लौं आय पाय
पटकि पटकि जात। हिये विरहानल की तपनि अपार उर
हार गज मोतिन के चटकि चटकि जात॥२६॥

ऊँचो कर करैं ताहि ऊँचो करतार करैं ऊनी मन आनै
दूनी होति हरकति है। ज्यों ज्यों धन धरै सैंचै त्यों त्यों
विधि खरो खैंचै लाख भाँति धरै कोटि भाँति सरकति है॥
दौलति दुनी में थिर काहू के न रही "क्षेम" पाछे नेकनामी
बदनामी खरकति है। राजा होइ राह होइ साह उमराइ
होइ जैसी होति नेति तैसी होति बरकति है॥२७॥

तारे भये कारे तेरे नैना रतनारे भये मोती भये सीरे तू न
सीरी अजहूँ भई। "छीत" कहै पीतमैं चकैया मिली तू न मिली
गैया तरु छूटी तेरी टेक ना छुटी दई॥ अरुनई नई तेरी अरु-
नई नई भई चहचही बोली आली तू न बोली ऐ बई। मंद छवि
भये चंद फूले अरविन्द वृन्द गई री विभावरी न रिस रावरी
गई॥२८॥

हाथी के दाँत के खिलौना बनैं भाँति भाँति बाधन की
खाल तपी शिव मन भाई है। मृगन की खालन को ओढ़त हैं
योगी यती छेरी की खाल थोरा पानी भरि लाई है॥ साबर
की खालन को बाँधत सिपाही लोग गैंड़ा की खाल राजा
रायन सुहाई है। कहै कवि "दयाराम" राम के भजन बिन
मानुस की खाल कछू काम नहिँ आई है॥२९॥

जस को सवाद जो पै सुनो कवि आनन सों रस को
सवाद जो पै और को पिआइये। जीभ को सवाद बुरी बोलिये