अधिकात हैं। दूरहि गयंद बाँधे दूर गुनवान ठाढ़े गज औ
गुनो के कहा मोल घटि जात हैं॥१७॥
मद के भिखारी मीन माँस के अहारी रहै सदा अना-
चारी चारी लिखते लिखावते। नारी कुल धाम की न प्यारी
परनारी आग विद्या पढ़ि पढ़ि हू कुविद्या मति धावते॥
आँखिन को काजर कलम से चुराय लेत ऐसे काम करै नेकु
शंकहु न आवते। जो पै सिंहबाहिनी निवाहिनी न होतो चंद
कायथ कलंकी काके द्वारे गति पावते॥१८॥
सखी उरबसी सी गरे पहिरे उरबसी सी पिया उर-
बंसी सी छबि देखे दुःख सरकि जात। कंचुकी कसीसी बहु
उपमा लसीसी रूप सुन्दर धसीसी परयंक पर थिरकि
जात॥ कहै हरचरन रही चमक बतीसी प्यारी जामें लगी
मीसी हिये सौतिन दरकि जात। भुज में कसीसी सिंधु
गङ्ग ज्यों धँसी सी जाके सीसी करिबे में सुधा सीसी सी
ढरकि जात॥१९॥
कुंद की कली छी दंत पाँति कौमुदी सी दीसी बिच बिच
मीसी रेख अमीसी गरकि जात। बीरी त्यों रची सी बिरची
सी लखैं तिरछी सी रीसी आँखियाँ वै सफरीसी फरकि
जात। रस की नदी सी "दयानिधि" की नदी सी थाह
चकित अरी सी रति डरी सी सरकि जात। फन्द में फँसी
सी भरि भुज में कसीसी जाकौ सीसी करिबे में सुधा सीसी
सी ढरकि जात॥२०॥
सुनो हो विटप हम पुहुप निहारे अहैं राखिहौं हमैं तो
शोभा रावरी बढ़ावेंगे। तजिहौ हरषि कै तो बिलग न मानैं
कछू जहाँ जहाँ जैहैं तहाँ दूनो यश गावेंगे। सुरन चढ़ैंगे नर
सिरनिचढ़ेंगे नित सुकवि "अनीस" हाथ हाथन विकावेंगे।
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