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लछिराम
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उद्यम कीजै जगत मैं मिलै भाग्य अनुसार॥
मोती मिलै कि संख कर सागर गोता मार॥१७॥
बिनु उद्यम नहिँ पाइये का लिख्यो हू जौन॥
बिनु जल पान न जाय है प्यास गङ्ग तट भौन॥१८॥
उद्यम में निद्रा नहीँ नहिँ सुख दारिद माहिँ॥
लोभी उर सन्तोष नहिँ धीर अबुध में नाहिँ॥१९॥
सुख दरिद्र सों दूर है जस दुरजन सों दूर॥
पथ्य चलन सों दूर रुज दूर सीतलहिँ सूर॥२०॥
अति सरसत परसत उरज उर लगि करत बिहार।
चिन्ह सहित तन को करत क्योंसखि हरि नहिँ हार॥२१॥
गौनो करि गौनो चहत पिअ बिदेस यस काजु।
सासु पासु जोहत खरी आँखि आँसु उर लाजु॥२२॥
पति देवत कहि नारि कहँ और आसरो नाहिँ।
सर्ग सिढ़ी जानडु यही वेद पुरान कहाहिँ॥२३॥


 

लछिराम

छिराम का जन्म पौष शुक्ल १०, सं॰ १८९८ को स्थान अमोढ़ा, जिला बस्ती, में, हुआ। इनके गाँव से लगा हुआ एक "चरथी" गाँव है। अमोढ़ा नरेश ने पुत्र-जन्म के उत्सव में इनकी कविता से प्रसन्न होकर वह गाँव इन्हें सदा के लिये दे दिया, और रहने के लिये एक अच्छा मकान भी बनवा दिया। उसी में ये सपरिवार आनन्द पूर्वक रहते थे।

१० वर्ष की अवस्था में लासाचक, जिला सुलतानपुर निवासी ईश कवि के पास इन्होंने साहित्य पढ़ना आरम्भ किया। पाँच वर्ष वहाँ पढ़कर सं॰ १९१४ में अवध नरेश