नखशिख, २२—रस रत्नाकर, २३—वार्ता संस्कृत, २४—ककारादि सहस्र नाम, २५—गया यात्रा, २६—गयाष्टक, २७—द्वादश दल कमल, २८—स्तुति पञ्चाशिका, २९—संकर्षणाष्टक, ३०—दनुजारि स्तोत्र, ३१—वाराह स्तोत्र, ३२—शिव स्तोत्र, ३३—श्री गोपाल स्तोत्र ३४—भगवत् स्तोत्र, ३५—श्री रामस्तोत्र, ३९—श्री राधा स्तोत्र, ३७—रामाष्टक, ३८—कलिकालाष्टक।
ये अपनी रचना में श्लेष और यमक की अच्छी बहार दिखलाते थे। परन्तु नीति और शांति रसकी कविता इन्होंने बहुत सरल भाषा में लिखी है। हमने इनका कोई ग्रन्थ नहीं देखा। संग्रह-ग्रंथों में कहीं कहीं इनके रचे छन्द उद्धृत हैं। उन्हीं में से चुनकर कुछ छन्द नीचे लिखे जाते हैं:—
१
सब केसव केसव के हित के गज सोहते शोभा अपार हैं।
जब सैलन सैलन सैलन ही फिरै सैलन सैलहिं सीस प्रहार है।
गिरिधारन धारन सों पद के जल धारन लै बसुधारन फार हैं।
अरि बारन बारन बारन पै सुर बारन बारन बारन बार हैं।
२
गुरुन को शिष्यन सुपात्र भूमिदेवन को मान देहु ज्ञान
देहु दान देहु धन सों। सुत को सन्यासिन को वर जिज
मानन को सिच्छा देहु भिच्छा देहु दिच्छा देहु मन सों
सत्रुन को मित्रन को पित्रन को जग बीच तीर देहु छीर देहु
नीर देहु पन सों। गिरिधरदास दासै स्वामी को अघी को
आसु रुन देहु सुख देहु दुःख देहु तन सोँ॥
३
बातनि क्यों ससुझावति है। मोहिं मैं तुमरो गुन जानति राधे।
प्रीति नई गिरिधारन सों भई कुंज में रीति के कारन साधे।