थी, इससे सन् १८७० के प्रथम दिल्ली दरवार में इनको गवर्नमेंट ने राजा की पदवी दी। ये २० वर्ष तक ८०० रु॰ मासिक पर पहले दरज़े के डिप्टी कलक्टर रहे। कांग्रेस के जन्मदाता मिस्टर ह्यूम की इन पर बड़ी श्रद्धा थी। उन्हीँ की कृपा से इनकी विशेष उन्नति हुई।
यद्यपि डिप्टी कलक्टरी के कामों से इन्हें अवकाश बहुत कम मिलता था, तो भी हिन्दी की ओर इनका ऐसा प्रेम था कि जो समय बचता उसे ये उसी की सेवा में लगाते थे। गवर्नमेंट की बहुत सी सरकारी किताबों का हिन्दी में उल्था करने के सिवाय इन्होंने शकुंतला, मेघदूत और रघुवंश का भाषानुवाद भी किया है। और ये ही पुस्तकें हिन्दी जगत में इनको अजर अमर बनाये रहेंगी। इन पुस्तकों के अनुवाद में इन्होंने अपने पांडित्य का जो चमत्कार दिखाया है वह किसी साहित्य-प्रेमी से छिपा नहीं है। भारतवर्ष तथा योरोप के विद्वानों ने भी इनको हिन्दी का कवि माना है। इनके अनुवाद में यह विशेषता है कि पद्य की कौन कहे, गद्य में भी उर्दू फ़ारसी का एक शब्द नहीँ आने पाया है। फिर भी एक एक पद सरस, सुपाठ्य और सरलता से भरा हुआ है।
शकुंतला के अनुवाद में से इनकी कविता की कुछ छटा हम दिखलाते हैं:—
१
कैसे भ्रमर चुम्बन करत।
नागकेसरि को सु अंकन रहसि रहसिहि भरत॥
सिरस फूलन कान धरि बन युवति मन को हरत।
देत शोभा परम सुन्दर सरस ऋतु लखि परत॥