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रामदयाल नेवटिया
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आपने अंतिम समय तक नहीँ छोड़ा। आप महीन से महीन अक्षर भी वृद्धावस्था में बिना चश्मे की सहायता के पढ़ लेते थे। अभी थोड़े ही दिन हुये, इसी आश्विन मास (सं॰ १९७५) में आपने इस असार संसार को परित्याग किया।

आप हिन्दी के अच्छे कवि थे। आपके रचे हुये तीन ग्रंथ हैं। तीनों छप चुके हैं। उनके नाम ये हैं:—१—प्रेमांकुर, २—बलभद्रविजय, ३—लक्ष्मणामंगल। कविता में आप अपना उपनाम कृष्णदास रखते थे। नीचे हम आप की कविता के कुछ नमूने उद्धृत करते हैं:—

बीत रही सब आयु तदपि बीती नहिँ आशा।
अजहुँ चहूँ सुख भोग रोग भय बड़ा तमाशा॥
शिथिल हो गई देह बात पित कफ ने घेरा।
श्वेत केश संदेश समन का लाया नेरा॥
शक्ति हीन इन्द्री भईं भक्ति लेश नहिँ तनक मन।
तृष्णा कों तजरे! अधम भजत क्यों न राधारमन॥

मैं कीनों बहु दोष एक भरोसे आपके।
तुमही करियौ रोष तो पापी की कवनि गति॥

दुजो आदर ना करै वाको कछू नादोस।
मैं तेरो तू ना सुनै यह भारी अफसोस॥

सिंधु होय जल बिन्दु इंदु सम होय दिवाकर।
अनल कमल को फूल तूल सम होय धराधर॥

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