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कविता-कौमुदी
 


सं॰ १९१४ में आप अजमेर वापस गये और वहाँ से कुछ दिन बाद फतहपुर चले आये। तब से वहीँ रहने लगे।

आप बड़े विद्या-व्यसनी थे। पुस्तकों से आप का बड़ा प्रेम था। गीताका प्रतिदिन पाठ करते थे। आपके पुस्तकालय में हिन्दी और संस्कृत की पुस्तकों का बहुत अच्छा संग्रह है।

आप बड़े मिलनसार, सुशील, विनयी, सदाचारी, उदार, न्यायप्रिय और शांत पुरुष थे। अभिमान तो आपको छू भी नहीं गया था। मारवाड़ी जाति के आप रत्न थे। आपके समान विद्वान् मारवाड़ी जाति में अभी तक कोई नहीं हुआ। आप समाज सुधार के बड़े पक्षपाती थे। गुणियों का आदर आप बड़े प्रेम से करते थे।

मुझे आपके समीप रहने का कई वर्षों तक अवसर मिला था। जब कोई शास्त्रीय चर्चा छिड़ जाती थी तब आपके अगाध पांडित्य का चमत्कार देख कर मन में बड़ा आनन्द उमड़ आता था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के आप मित्रों में से थे, राजा शिवप्रसाद से भी आपका पत्र व्यवहार था।

बालकपन में आपकी आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी। आपके सद्व्यवहार, कर्त्तव्य परायणता, सत्याचरण और धर्मनिष्ठा पर लक्ष्मी भी मोहित हो गई और अपने जीवन काल में ही आप अपने बृहत् परिवार को करोड़ों की सम्पत्ति से सुखी देखकर स्वर्गवासी हुये।

आपका स्वास्थ्य बहुत सुन्दर था। सं॰ १९७० में आपने गङ्गोत्री और जमनोत्री को यात्रा की थी। सं॰ १९७४ के अंत में आप मथुरा आये थे। वहीँ मेरा आप से अंतिम साक्षात्कार हुआ। आप चार बजे प्रातःकाल उठते, शौच और स्नान से निवज होकर पूजा पर बैठ जाते थे। पूजा-पाठ