उचित है। क्योंकि यदि हस्तलिखित प्रति खो गई तो लेखक के कितने दिनों का परिश्रम, जिसे उसने अपना कलेजा घुला घुला कर किया है, सहज में नष्ट हो जायगा।
राय रणधीर सिंह की कविता का कुछ नमूना हम नीचे उद्धृत करते हैं:—
नामार्णव पिंगल—यह सं॰ १८९४ सं॰ में बना। इसमें एक एक वस्तु के कई कई नाम नाना छंदों में लिखे गये हैं। साथ ही साथ छंदों के लक्षण और उदाहरण भी हैं। पिंगल ग्रंथों में जितने विषय होने चाहिये, उतने तो हैं हीँ। कुछ अन्य बातें भी जो पद्य रचयिताओं के लिये ज्ञातव्य हैं, इस पुस्तक में वर्णित हैं। एक उदाहरण देखिये:—
अग्निनाम-कुंडलिया छंद
सिंह विलोकित रीति दै दोहा पर रोलाहि।
आदि अंत जुरि जमक युत, कुंडलिया कहि ताहि॥
अनल बन्हि पावक दहन ज्वलन शिखी वृषभानु।
शुक्र धनंजय बातसख ऊषर अग्नि कृशानु॥
ऊषर अग्नि कृषानु आनु बुध चित्रभानु इमि।
धूमध्वज जलजोनि विभावसु बीतिगोत्र तिमि॥
जातवेद जुत आनि निसाचर तूल तूल्य दल।
काली जू भ्रुअ भंग आजु जारत क्रोधानल॥
काव्य रत्नाकर—सं॰ १९९७ वि॰ में बना। यह नायिका भेद और अलंकार का ग्रंथ है। रचना अच्छी है। ग्राम्यवधू का वर्णन देखिये:—
गेह काज करति छिनक दौरि हेरै द्वार छिनक उठाय घट
जाती जल लैन को। चकबक ताकती इतै उतै बिलोकि काहू
मुरि मुसुकाय ललचाय जोरि नैन को॥ मैन मद माती आठि-
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