रणधीर सिंह
जौनपुर नगर से २४ मील पश्चिम सिँगरामऊ एक गाँव है। वह एक रियासत का मुख्य स्थान है। रियासत न तो बहुत बड़ी ही है और न बहुत साधारण ही हैं। आज से लगभग सवा सौ वर्ष पहले वहाँ ठाकुर संग्रामसिंह राज करते थे। उनके पिता का नाम ठाकुर शिवबक्सराय सिंह था, जो ठाकुर संग्रामसिंह की वाल्यावस्था में ही स्वर्गवासी हो गये थे। ठाकुर संग्रामसिंह का जन्म सं॰ १८३५ वि॰ में सिङ्गरामऊ में हुआ। सं॰ १८९० में उन्होंने काशी में शरीर त्याग किया। वे बड़े वीर थे। उन्होंने बृटिश सरकार के एक बहुत बड़े बाग़ी को स्वयं अपने बाहुबल से पकड़कर सरकार के हवाले किया था। उसके उपलक्ष्य में सरकार उन्हें बारह सौ रुपया वार्षिक दिया करती थी। ठाकुर संग्रामसिंह बड़े विद्या व्यसनी थे। वे एक अच्छे कवि थे। और गुणियों का यथोचित आदर करते थे। वेदान्त शास्त्र के थे अच्छे ज्ञाता थे। छंद लक्षण, नायका भेद, अलंकार तथा विविध विषयों की उत्तम रचनाओं से विभूषित उनका काव्यार्णव नामका काव्य-ग्रन्थ बहुत उत्तम बना है। वह की १९२१ में लेथो में छपा हुआ है।
राय रणधीरसिंह ठाकुर संग्रामसिंह के पौत्र थे। इनके पिता का नाम ठाकुर गजराजसिंह था। ठाकुर गजराज सिंह जी भी कवियों का अच्छा सत्कार करते थे, परन्तु वे स्वयं भी कविता करते थे या नहीं, यह मुझे नहीं मालूम।
राय रणधीरसिंह का जन्म सं॰ १८७८ वि॰ में हुआ।